महाभारत काल में बने इस भीमगोडा कुंड के पीछे मान्यता यह भी है कि स्वर्ग जाते समय पांडव यहां से होकर गुजरे थे। कुंती को प्यास लगने पर भीम ने अपने पैर से पहाड़ के चट्टान पर प्रहार कर गंगा नदी की धारा निकाल दी। जिससे कुंती के साथ ही पांडवों ने भी अपनी प्यास बुझाई।
बाद में अंग्रेज सरकार ने इसके पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के चलते 1842 से 1854 के बीच भीमगोड़ा कुंड को विस्तार देकर इसमें गंगाजल भरने को छोटी नहर का निर्माण कराया था। भीमगोड़ा कुंड के सौंदर्यीकरण व कायाकल्प की मुहिम दैनिक जागरण ने शुरू की थी। अर्द्धकुंभ के दौरान प्रशासन व नगर निगम ने मिलकर इस कुंड की गंदगी को साफ कराया। तत्कालीन स्थानीय पार्षद लखनलाल चौहान ने मोहल्ले के नागिरकों के साथ मिलकर इसकी सफाई कराई थी।
वर्गारोहण यात्रा के दौरान पांडव के हरिद्वार पहुंचने पर उन्हें प्यास लग गई थी। भीम ने अपने पैर (गोड़) से प्रहार किया था। कहते हैं कि भीम के प्रहार से पताल लोक से पानी का सोता फूटा था जिससे कुंती और पांचाली ने अपनी प्यास बुझायी थी।